प्यारे रीडर्स आप सभी का लेटेस्ट जानकारी में स्वागत है जैसा कि अब तक हमारे पोस्ट में आप हेल्थ की काफ़ी जानकारियां पाते आए हैं आज भी इन्हीं जानकारियों को आगे बढ़ाते हुए आज आपको हम बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे सेहत से जुड़े सवालों के जवाब जो हर कोई जानना चाहता है प्रार्थमिक उपचार कुछ ऐसे बीमारी जैसे की आग से जलना नकसीर विषाक्तता सर्पविष दम घुटना रक्त स्राव दिल का दौरा यह बीमारियां ऐसी है जिसका प्रार्थमिक उपचार की शुरुआत आप घर से कर सकते हैं बाद में आप डॉक्टर से इलाज करवाएंगे तो आज इस पोस्ट में आप जानिए कि यह जो बीमारियों के बारे में हमने लिखा है इस बीमारियों का प्रार्थमिक उपचार क्या है आप सभी से हर बार की तरह मैं फिर से निवेदन करता हूं कि कोई भी जानकारी अधूरा कभी भी फायदेमंद साबित नहीं हो सकता अगर आप फायदा पाना चाहते हैं तो इस पोस्ट को पूरी तरह पढ़ें आपको फायदा अवश्य मिलेगा अब आगे….
आग से जलना
आग से जलने पर निम्नलिखित उपाय करें –
- यदि आग का प्रभाव भीतरी मांस तक न हो , तो प्रभावित अंग अथवा शरीर के भाग को तुरंत पानी में डुबो दें। एक से दो घंटे तक पानी में डुबोने से न तो जलन होगी , न फफोले पड़ेंगे और न ही दर्द होगा। पानी ठंडा होना चाहिए और हर आधा घंटा बाद बदल लेना चाहिए। गर्मी का मौसम हो , तो पानी में बर्फ भी डालें। यदि ज्यादा जला हुआ हो और आग का असर भीतरी मांस तक हो , तो पानी न डालें।
- शरीर पर नारियल का तेल लगायें। यदि त्वचा जल गयी हो , तो स्वच्छ वस्त्र (गॉज आदि ) को नारियल के तेल में भिंगोकर प्रभावित अंग पर रखें।
- यदि घाव बन गए हो , तो उबाल कर ठन्डे किये हुए पानी में सुहागा घोलकर उस घोल से घाव को धोएं।
- सुहागे और पानी का अनुपात 1 : 20 हो। घावों को धोकर , सुखाकर नारियल का तेल लगायें।
- जले हुए स्थान पर शहद का लेप करने से भी तुरंत आराम मिलता हैं।
- नारियल का तेल और चूने का निथरा हुआ पानी बराबर मात्रा में मिलाकर जले हुए भाग पर लेप करें।
- हींग को पानी में घोलकर साफ़ रूई से तुरंत ही जले भाग पर लगाएं। इसके बाद उबालकर ठन्डे किये हुए पानी में हींग का घोल बनाकर रख लें और हर तीन चार घंटे बाद लगाते रहे।
- जले हुए अंग पर स्वमूत्र लगायें। यदि त्वचा जल गयी हो , तो स्वच्छ वस्त्र स्वमूत्र में भिंगोकर प्रभावित अंग पर रखें ।
नकसीर
यदि नाक से खून बह रहा हो , तो सबसे पहले उपाय के रूप में रोगी को बैठाकर रखें , ताकि खून पीछे की ओर न रह जाएं। नाक को पूरी तरह से साफ़ करें , ताकि खून का कोई थक्का नाक में रह न जाएं। तत्पश्चात निम्नलिखित उपाय करें –
- स्वच्छ वस्त्र ( अधिमानातः विसंक्रमित गॉज ) को वेसलीं अथवा शहद में भिंगोकर नाक में अच्छी तरह भर दें।
- नाक को साफ़ करने के पश्चात ताजा आंवलों का रस नाक में टपकाएं या साफ़ कपड़े को आंवले के रस में भिंगोकर नाक में भर दें। यदि ताजा आंवला न मिले तो सूखे आंवले पानी के साथ कूट – पीसकर पानी में भिंगोकर उसकी नस्य दें।
- सुहागा पानी में घोलकर नाक में बूँद – बूँद कर डालें अथवा स्वच्छ वस्त्र को घोल में गीलाकर नाक में भरें।
- सिर पर ठन्डे पानी की धार डालें। तत्पश्चात ताजे आंवले को पीसकर या सूखे आंवले को पानी में भिंगोकर , कूट – पीसकर सिर पर लेप करें। सिर पर सुहागे के घोल का लेप भी किया जा सकता हैं।
आयुर्वेदिक औषधियां
एमाईक्लोट गोलियां (एमिल) , पोसैक्स फोर्ट गोलियां (चरक) भी नकसीर की चिकत्सा हेतु प्रयोग में ला सकते हैं।
विषाक्तता
कारण
विष शरीर में निम्नलिखित मार्गों से प्रवेश कर सकता हैं –
भोजन नली द्वारा – इसमें कीटनाशक व दवाइयों के अतिरिक्त नींद लाने वाले विष शामिल हैं – जैसे धतूरा, अफीम, संखिया आदि। जलाने वाले पदार्थों में तेज़ाब आदि पदार्थ शामिल हैं, जबकि तेल, पेट्रोल, पारा आदि न जलाने वाले पदार्थ हैं।
फेफड़ों में श्वास मार्ग द्वारा – विषैली गैस व धुआँ आदि द्वारा भी विष का प्रवेश हो सकता हैं।
त्वचा द्वारा – इसमें टीके द्वारा विषैली दवाओं का प्रयोग अथवा जंगली जानवरों के काटने पर विष शरीर में प्रवेश कर सकता हैं।
लक्षण
- चक्कर आना, उलटी होना, जी मिचलाना, दस्त लगना, पेट में दर्द होना।
- होंठ, मुंह, गला व आमाशय में जलन तथा दर्द, ऐसा प्रायः तेज़ाब या दाहक पदार्थों की विषाक्तता में होता हैं।
- गहरी नींद, चक्कर आना, दम घुटना, दौरा पढ़ना, मूर्च्छा आदि।
विष चिकित्सा के सामान्य नियम
- यदि रोगी होश में हैं तो उलटी करायें।
- यदि रोगी मूर्च्छित हो तो पानी या अन्य कोई द्रव न पिलायें। रोगी का सिरहाना नीचा करके उसे एक करवट लिटा दें, ताकि उलटी हो, तो बाहर निकल जाएँ।
- श्वास क्रिया धीमी हो, तो कृत्रिम श्वास दें।
- रोगी को सोने न दें।
विष चिकित्सा के लिए सर्वप्रथम पेट का शोधन आवश्यक हैं। शोधन के लिए हलके गर्म पानी में नमक डालकर भर पेट पिलायें, उलटी होने के बाद और पानी पिला दें, तीन – चार बार में सारा विष निकल जाएगा। गर्म पानी के विकल्प के रूप में विशेष रूप से तेज़ाब या दाहक पदार्थों की विषाक्तता में भर पेट दूध पिलायें। कीटाणुनाशक विषों के मामले में पानी या पैराफिन का तेल पिलायें। अमला या दाहक पदार्थों की विषाक्तता में वमन न करायें।
पेट का शोधन करने के पश्चात 100 – 150 ग्राम देसी घी गर्म करें और उसमें 15 – 20 काली मिर्च पीसकर मिला लें। काली मिर्च्युक्त यह देसी घी रोगी को पिला दें। घी यदि गाय का हो तो उत्तम हैं। 3 घंटे किए बाद एक मात्रा पुनः दे सकते हैं।
सर्पविष
कारण
सांप विषैला भी हो सकता हैं और विषहीन भी। विषैले सांप के जबड़े में दो से चार तक दांत होते हैं। विषहीन जातियों के सांप के जबड़े में चार से आठ तक दांत होते हैं।
लक्षण
सांप के काटे हुए स्थान पर दांत के निशान मिलेंगे, वहाँ से खून बहता हुआ मिलेगा। वहाँ सूजन, जलन व दर्द भी होगा। रोगी के मुंह से झाग निकल सकते हैं। रोगी को नींद आयेगी व रोगी बेहोश भी हो सकता हैं। रोगी की आँखों की पुतलियाँ फैल जाएंगी।
घरेलू चिकित्सा
- सांप के काटे हुए स्थान से ऊपर ह्रदय की ओर 8 – 10 सेमी पर कपड़े, रस्सी, डोरी आदि से कसकर बाँध दे। चार – चार से.मी. ऊपर दो – तीन बंधन और बाँध दें, ताकि जहर खून के साथ ह्रदय में न पहुँच सके। यदि सांप ने ऐसी जगह काटा हो, जहां बंधन न बांधा जा सके तो वहाँ बर्फ रगड़े।
- बंधन बाँधने के बाद नया ब्लेड लेकर सांप काटने के स्थान पर चीर दें। नया ब्लेड न हो, तो कोई पुराना ब्लेड या धारदार चाकू वगैरह आग की लौ में गर्म कर उससे चीरा लगायें। चीरा लगाकर बंधन बांधे स्थान से ऊपर से नीचे की ओर दबाव लगाकर खून को बाहर निकालें, जिससे खून के साथ जहर भी बाहर आ जाएगा।
- रोगी को सोने न दें व उससे सांत्वना देने वाली बातें करते रहे।
- रोगी को तत्काल अस्पताल ले जाएं।
दम घुटना
कारण
फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में ताजी हवा न पहुँचने से मस्तिष्क व ह्रदय आदि महत्वपूर्ण अंगों में ऑक्सीजन की कमी होने से उत्पन्न दशा को दम घुटना कहा जाता हैं।
पानी में डूबने, गला घोंटने, गले के अन्दर सूजन होने तथा विषैली गैसों के धुंए के कारण फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का अभाव हो जाता हैं। विष के प्रभाव तथा बिजली का झटका लगने से भी शरीर के अनावश्यक अंगों में ऑक्सीजन की कमी हो सकती हैं।
लक्षण
चक्कर आना, होंठ, नाक व नाखूनों में पीलापन व बाद में नीलापन, नाड़ी की गति अनियमित होना, गर्दन की शिराओं का फूल जाना व चेहरा नीला होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
घरेलू चिकित्सा
- कारण दूर करें व रोगी को पर्याप्त हवा वाले खुले स्थान पर रखें।
- श्वास प्रणाली मार्ग में यदि कोई रूकावट हो तो उसे दूर करें।
- आवश्यक हो तो कृत्रिम श्वास दें।
- रोगी को तुरंत अस्पताल ले जाएं।
दम घुटन पर विशिष्ट चिकित्सा
- पानी में डूबने पर
रोगी को पेट के बल लिटायें। कमर को ऊपर उठाएं ताकि फेफड़ों से पानी बाहर निकल जाएं। पेट के नीचे मटका या चद्दर आदि कोई कपड़ा तह करके रखने से पानी सरलता व शीघ्रता से पेट से बाहर निकल जाता हैं।
ख.) गला घोंटना व फांसी लगाना
रोगी की रस्सियाँ ढीली करें और रोगी को जमीन पर लिटा दें। कृत्रिम श्वास दें और रोगी को अस्पताल भेजें।
ग.) बिजली का झटका लगना
बिजली की आपूर्ति बंद करें या लकड़ी के डंडे की सहायता से रोगी को बिजली के तार या स्विच आदि से अलग करें। आवश्यक हो, तो कृत्रिम श्वास दें।
रक्त स्राव
यह दो प्रकार का हो सकता हैं – आतंरिक या गुप्त, बाह्य या प्रत्यक्ष।
आतंरिक रक्तस्राव
सिर, पसली या कूल्हे की हड्डी टूट जाने, गोली या चाकू लगने आदि कारणों से रक्तस्राव शुरू हो जाता हैं, जो बाहर नजर नहीं आता हैं। उपरोक्त कारणों से मस्तिष्क, यकृत, प्लीहा आदि अंगों से होने वाला रक्तस्राव प्रायः नजर नहीं आता।
लक्षण
घबराहट, कमजोरी व चक्कर आना। प्यास अधिक लगना। छूने पर शरीर एकदम ठंडा महसूस होना। चेहरा और होंठ पीला पड़ना। धड़कन का स्पंदन मंद व गति तेज होना।
घरेलू चिकित्सा
- रोगी को मुंह से कुछ भी खाने या पीने को न दें।
- आवश्यक हो, तो कृत्रिम श्वास दें।
- रोगी को तुरंत अस्पताल पहुंचाए।
बाह्य रक्तस्राव
- यदि नाक से रक्तस्राव हो, तो रोगी को आगे झुकाकर बैठाएं, सिर व नाक पर ठन्डे पानी से तर कपड़े की पट्टी करें, रोगी को नाक के बजाय मुंह से सांस लेने के लिए कहें और यदि नाक में खून जमा हो, तो उसे साफ़ करें।
- यदि कान से रक्तस्राव हो रहा हो, तो रोगी को चोट लगे कान की तरफ करवट करके लिटा दें।
- यदि सिर से खून बह रहा हो और हड्डी न टूटी हो, तो साफ़ कपड़ा रखकर, दबाकर पट्टी बाँध दें ताकि खून रूक जाए। यदि मुंह के अन्दर से जीभ, मसूड़ों, दांत, दांत के गड्ढे, गला या गले के ऊपरी भाग से खून आ रहा हो, तो रोगी को पीठ के बल घुटने मोड़कर लिटा दें। यदि पेट में चाकू या अन्य कोई धारदार हथियार घुसा हो, तो उसे नकालें नहीं। यदि चाकू निकल गया हो और अंतड़ियां बाहर निकल गयी हो, तो उन्हें वापस अन्दर न डालें, बल्कि साफ़ कपड़े से ढंककर ढीली पट्टी बाँध दें। रोगी को कुछ भी खाने या पीने को न दें और रोगी को तुरंत अस्पताल भेजने की व्यवस्था करें।
यदि मामूली घाव या चोट हो और हल्का रक्तस्राव हो, तो फिटकरी के घोल से साफ़ करें। साफ़ करने के बाद शहद में गेरू या हल्की बारीक पीसकर मिलाएं व पट्टी कर दें।
दिल का दौरा
कारण
विभिन्न कारणों से ह्रदय की मांसपेशियों से रक्त न पहुँचने से दिल का दौरा पड़ता हैं।
लक्षण
छाती में बाई ओर दर्द की शिकायत। दर्द बाएँ हाथ में विशेषकर छोटी अंगुली की ओर, गर्दन, पीठ या कंधे की ओर भी हो सकता हैं। इसमें ठंडा पसीना आता हैं। उलटी या दस्त की शिकायत भी हो सकती हैं। सांस लेने में कठिनाई हो सकती हैं। नाखून नीले व त्वचा पीली पड़ सकती हैं। सीने की हड्डी के नीचे भारीपन हो सकता हैं।
घरेलू चिकित्सा
- रोगी को सिर व कंधा थोड़ा ऊपर रखकर लिटाएं।
- रोगी के वस्त्र ढीले कर दें।
- सांस लेने में कठिनाई हो तो कृत्रिम सांस दें।
- यदि शरीर ठंडा हो तो कंबल लपेट दें।
- अर्जुन की छाल या छाल का चूर्ण पानी में उबालकर पिलाएं तथा आधा चमच्च चूर्ण जीभ के नीचे रखकर रोगी को चूसने के लिए दें।
- रोगी को तुरंत अपानवायु मुद्रा में बिठाएं। अपानवायु मुद्रा में तर्जनी अंगुली को अंगूठे की जड़ में लगाएं तथा बीच की दोनों अँगुलियों के अगले सिरे से लगायें। कनिष्ठिका को अलग रखें। यह मुद्रा दिल के दौरे को तुरंत रोकने में अत्यंत प्रभावी हैं।
- रोगी को तुरंत अस्पताल भेजने की व्यवस्था करें।
नोट: बताये हुए बिधि को यूज़ करते रहे आपको फायदा अवश्य मिलेगा, और फिर भी मन में कोई संकोच है, तो एक बार डॉक्टर की परामर्श अवश्य लें. हमारे लेटेस्ट जानकारी के पोस्ट को इसी तरह पढ़ते रहे और फायदा प्राप्त करते रहें।